है लहू जो बनकर दौड़ रहा,
वो कण-कण तुझे पुकार रहा|
जागो, बेटो भारत माँ के
माँ को देखो कोई मार रहा|
तलवार ,धनुष और तीरों में
अब जंग नहीं लगने देना
लुट चुका है पहले बार कई
इस बार ना तुम ठगने देना|
जरा सुनो शिवाजी,राणा का
तेजस तुमसे ये बोल रहा,
थामो संस्कृति की बागडोर
उसपे है संकट डोल रहा|
पद्मावति के जौहर,
झाँसी की रानी का सम्मान करो
गुरु तेग बहादुर सदृश पुत्र के
त्याग पे कुछ अभिमान करो|
चाणक्य,पाणिनि,सुश्रुत के
ग्रंथो को अब तो खोलो तुम
फिर विश्वगुरु का पद पाकर
दो शब्द ज्ञान के बोलो तुम|
अब तुलसी ,सूर कबीरा के
छंदों की वर्षा तुम कर दो
जो आँगन भय से सूख गए
उन्हें प्रेम भक्ति जल से भर दो|
इसके हिमगिरि सा मुकुट कहाँ
हिंदसागर सी न है पायल
जिनके सौंदर्य के दर्शन की
पूरी दुनिया ही है कायल|
है सब ऋतुओं का वास यहाँ
सब धर्म यहाँ पर बसते हैं
कभी सजती ईद में है मस्जिद
कभी नवरात में मंदिर सजते हैं|
यहाँ गुरबानी के उपदेशों से
पाप कई रुक जाते हैं|
जीसस मैरी के चरणों में
कभी शीश कई झुक जाते हैं|
यहाँ धर्म, जाति, भाषा, बोली
गढ़ते रहते हैं रूप अनेक
समृद्धि सूत्र में बँधकर पर
लगते ये मोतीमाल हैं एक|
लाल किला और ताजमहल
की ईटें सब ये कहती हैं
क्यों 'धर्म' नाम पर लड़ते हो
जब खून की नदियाँ बहती हैं |
सदियों से गुफा अजंता की
कान्हा के मंदिर बोल रहे है
प्रेम सार बस जीवन का
क्यों नफरत सब में घोल रहे|
मंदिर,मस्जिद ,गुरुद्वारों की
मर्यादा का भी कुछ सोचो
जो परत जम गयी जख्मों पर
अब फिर से उनको मत नोचो
तुम नालन्दा और तक्षशिला
की ज्ञान ज्योति,बन जल जाओ
कोणार्क,सूर्य मंदिर सबको
स्तूप साँची का दिखलाओ|
इसके गौरव को जानो तुम
अक्षुण ये इसकी थाती है
वैविध्य है जो सबके अन्दर
वो बात ही सबको भाती है|
ना खून बहे, ना हो क्रंदन
अब बने ना हिंसा मनोरंजन
समृद्धि,शांति की बाहों में ही
गढ़ते रहते हैं रूप अनेक
समृद्धि सूत्र में बँधकर पर
लगते ये मोतीमाल हैं एक|
लाल किला और ताजमहल
की ईटें सब ये कहती हैं
क्यों 'धर्म' नाम पर लड़ते हो
जब खून की नदियाँ बहती हैं |
सदियों से गुफा अजंता की
कान्हा के मंदिर बोल रहे है
प्रेम सार बस जीवन का
क्यों नफरत सब में घोल रहे|
मंदिर,मस्जिद ,गुरुद्वारों की
मर्यादा का भी कुछ सोचो
जो परत जम गयी जख्मों पर
अब फिर से उनको मत नोचो
तुम नालन्दा और तक्षशिला
की ज्ञान ज्योति,बन जल जाओ
कोणार्क,सूर्य मंदिर सबको
स्तूप साँची का दिखलाओ|
इसके गौरव को जानो तुम
अक्षुण ये इसकी थाती है
वैविध्य है जो सबके अन्दर
वो बात ही सबको भाती है|
ना खून बहे, ना हो क्रंदन
अब बने ना हिंसा मनोरंजन
समृद्धि,शांति की बाहों में ही
मानव का हो आलिंगन|
तुम उठो,बढ़ो अब पग-पग कर
बदले भारत का मान बनो
जो खोया है इस जगती ने
लौटा हुआ वो सम्मान बनो |
तुम उठो,बढ़ो अब पग-पग कर
बदले भारत का मान बनो
जो खोया है इस जगती ने
लौटा हुआ वो सम्मान बनो |
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