Saturday, January 14, 2012

कौन है कितना अहम्

कौन है कितना अहम् ,
ये बात खुद में एक वहम ........
खुद में अधूरे सब यहाँ ,कहाँ कोई चीज़ पूरी,,
नजदीकियां भी है तभी जब तक है दूरी...
शाम की ठंडक तभी तक ही जवां है
जब तक सुलगने पर ही सूरज को गुमां है ....
हथेलियों की चौखटों पे भी है रौनक
जब तलक उनपर ये किस्मत के निशां है..

दिन के बिन है रात क्या ये कौन जाने..
चंदा तभी,,,, सूरज बदलता जब ठिकाने....
 .
फूल तब तक ही जवानी का शहर
जब तक जलाये काटें अपने शाम-ओ सहर..
साकी है बादल ,तो धरती मद का प्याला ..
एक पिलाता है ,तो दूजा पीने वाला ...

 धूप के भी हुस्न का जलवा तभी है,
जब हो उसके साथ उसके अपने साए,
सच्चे अपनें भी तभी आते समझ में..
जब कभी मिलते है कुछ सच्चे पराये ..

पाना है क्या ,खोने के बाद ही आता..
खामोशियों के बाद ही कोई लफ्ज़ है भाता..
भीड़ भी तभी तक भीड़ है, जब तक तन्हाई है..
आईने में भी चमक ,खुद की नज़रों से आयी है..
जुड़ना सभी बूंदों ने सीखा है तभी से
जब बारिश में बिखरकर अपनी पहचान गँवाई है..
सन्नाटों से क्यों पूछते हो,महफ़िल का पता ..
उन्होंने ये राज़ दबाने में एक उम्र गँवाई है...||

हिन्दू है क्या ,मुस्लिम है क्या ,
      इस सोच पे ही है रहम....
अल्लाह,राम को हो खबर
तो खुद वो जायेंगे सहम ...  
कौन है कितना अहम्
ये  बात खुद में एक वहम ............?????????/

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