Monday, January 16, 2012

पल मोहब्बत का...||

धूप फिर बन कर दुल्हन ,
उतरी हवा की डोली से
पैरों में  है सरसराहट , बज रही छन छन
पत्ते ,पेड़ फूल सारे ...,सुर में है सब आँगन..
खेत की भीगी भीगी घास की
नर्म सी हथेलियों पर पाँव वो रखकर
लचक लचक के चल रही ना जाने कितने रास्तों से..
प्यासे कोनों और गड्ढो के प्यालों  में जाम-ए-रोशनी  भरकर...
फसल पर कंघियाँ करती ,अजब सी एक जुबां भरती ...
चल रही मदमस्त तुम सी ही  वो बल खाके ,
घोलती मदहोशी इन ताज़ी फिजाओं में..
अभी तक तो सुना था,और पढ़ा था
बस किस्सों में,....पर सच में ..
गुरूर होता है कुछ चेहरों को अपनी अदाओं पे...

छोटे पेड़ खुश है,उनके खोये साये उनको मिल गये..
बड़े पेड़ों के साये ,ज़मीन नापने को दूर तक ..निकले
पत्तियों की गर्म साँसों से सुलग रही ठंडक
सुलग रहा ज़र्रा ज़र्रा,एक मद्धम सी आग में..
सूरज पिघल कर गिर रहा धरती की बाहों.में .
एक परवाना जैसे मिल रहा ,शम्मा की आहों से..

धरती के दिल में भी आज कुछ हल चल हुई तो है..
बोला ना कुछ कभी तो क्या वो जिंदा तो है..
सायों से लिपट लिपट कर ,वो कर रही इज़हार ..
ये ही है शायद वो ,
जो होता सबको एक बार ..
दीवानापन ,ये दिल्लगी, ये इश्क ये ही प्यार ..||

बस रूह धरती की सुना है ,कह रही इतना ...
थम जाओ यहीं ए ज़िन्दगी ,यहाँ वक़्त है कितना...
रोज़ मिलते है पर रोज़ वो बात नहीं होती ..
राह पर भिड़ना ,तकदीर हो सकता है ,मुलाकात नहीं होती..
देखकर ये लग रहा ,कि ख्वाब कोई जग रहा फिर से...
ज़मीन खिसको ना पैरों तले,आसमाँ उड़ो ना सिर से,..
है आज मौसम दिल की कुछ गुपचुप शरारत का...
खुद को फ़ना करके जी लूँ ये पल मोहब्बत का...||
खुद को फ़ना करके जी लूँ ये पल मोहब्बत का...||

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