Sunday, February 5, 2012


ख्वाब से उठता रहा धुआं कभी कभी..
आग फूंकता रहा मैं ही कभी कभी ..
कुछ शरारे(चिंगारियाँ) पंख खोलते हवाओं में
और फिर गिरते से देखे है कभी कभी ..

कुछ कर गुजरने का ख्याल सोता है ज़हन में...
मैं चादर उठा जगा उसे देता कभी कभी
अपनी हिम्मत की तलवार ,ढाल लेके सपनों की
मैं कवच ओढ़ता हूँ लड़ने को कभी कभी...
मजबूरियों का शौक अब मुझको नही जंचता
बदनामियों का रंग भी मुझपर नहीं चढ़ता..
बस एक ही जिद साँसों में है झूमती रहती
मैं जीत न पाया अभी तो मर नहीं सकता .....
खुदा कहीं मुझमे है बैठा ये भरोसा है ..
पंखों में कुछ जादू जुनूनी पंछियों सा है ...
मैं आसमानों को कभी छू न पाया हूँ तो क्या
उड़ान की है जिद ,तभी उड़ता  कभी कभी..
जिंदगी मौका न दे तो सोग(शोक) न करना...
एक सांस में भी मिलती है चीज़ें कभी कभी ...
मुस्कान के  एहसास का गुमान कम न हो
इसलिए रोना भी पड़ता है कभी कभी...

सब ताक पे रख दो ,ज़रा बेबाकियाँ पहनों
जुनूं को आज बढ़ने दो,नशा-ए-शौक चढ़ने दो ..
नहीं किस्मत में कुछ ,तो भी खुदा से छीन के लाना
यूँ भी पूरी होती है हसरत  कभी कभी ..
.......
ख्वाब है मेरा ,मेरी साँसों की लौ है ये
खुद को जला दूंगा ,बुझा जो ये कभी कभी ...

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