Tuesday, February 7, 2012

मासूम कोशिश ...


एक रोज की बात है ,रात में,... "बाल्कनी" में
बैठा था मैं ,
सामने थे मेरे ख़याल ,जिनसे कुछ किस्से बाँट रहा था  ..||

नींद कहीं गई हुई थी
बोला था रात को आएगी
इसलिए आँखों के दरवाजे पे मैंने कुंडियां नहीं लगायी थी ||

नन्हे नन्हे तारे ,...सो रहे थे सारे
गहरी नींद में .....चादर ओढ़ के
एक ठंडा हवा का झोंका
जो मेरी खिडकी के बाहर लगे पीपल की सबसे ऊंची शाखों को
छेड़ता हुआ गुज़रता था
उन  नन्हे मासूम तारों की चादर सरका देता था...||
रात उन्हें लोरी गाकर फिर सुला देती थी ..
चादर ओढा देती थी ,
वो रात भर इसी काम में लगी रहती है ....,सोती नहीं ||

एक चाँद दिन भर का सोया हुआ
पहरेदारी कर रहा था उन नन्हे छोटे तारों की..
मैं बहतु देर तक तलाशता रहा ,....कोई मौका
जिसमें चाँद की नज़र फिसले
तो मैं वो तारा चोरी कर लूं
जो तुमने,   एक बार दिखाया था    ...इशारा करके
इसी बालकनी से ,||
हालाँकि... चाँद रात भर  सोता नहीं
अरसों से ...बड़ा वफादार चौकीदार  रहा है वो
इसी घर में काम करता है न जाने कब से..!!!!!!!
पर उस दिन समां शायद कुछ और था
चांदनी ने बालियाँ पहनी थी उस दिन ,सगाई के दिन वाली
और चाँद की दी हुई वो साडी भी पहले करवाचौथ की .....||
उस खामोश सी ,शबनमी फिजा में
चाँद के कंधे पर सिर रखकर
चांदनी ने हलके से इक बादलों का एक शहर घूमने की जिद कर दी थी शायद|
चाँद मना न कर सका ..
एक हलकी सी झंपकी पे सवार होकर, वो ज़रा दूर,
 एक बादल  के पीछे निकला ही था
कि मैंने वो तारा धीरे से अपनी हथेलियों में छिपाकर चुरा लिया ||
बहुत गोरा सा था वो ,नैन नक्श सब तुमपे ही गए थे उसके ..
बड़े तीखे थे ....
चेहरा पर तुमसा ही उसने एक नूर सजा रखा था ||


सुबह उठा  वो जब ,,, तो गम  हुआ उसे भी
अपनों से दूर होने का
उसको बहलाया फुसलाया मैंने
और एक वादा भी किया
कि उसे एक फ़रिश्ते से मिलाऊंगा
जो बिलकुल उसके जैसा है
तुम्हारी तस्वीर भी दिखाई ..
सारे किस्से ,कहानियाँ भी सुनाई
............
तबसे उम्मीद बांधकर बैठा है वो ..
हर रात उससे एक ही वादा दोहराता हूँ मैं
एक फरिश्ता आयेगा ,बिलकुल उसके जैसा... उसको गोद में लेने .... 

मेरा नहीं ..,तो कम से कम
 उसका दिल रखने के लिए ही चले आओ...||
उसको ये तो बतला दो ,
कि मेरी पसंद कोई ख़याल नहीं है....
हकीकत है जो साँसों में जिंदा रहती है  ...||
==============..
मेरी चोरी यूँ ही ज़ाया न होने दो..
पहली बार इतनी मासूम कोशिश की है..
शायद आइन्दा इतनी हिम्मत न हो ...



1 comment:

  1. इसे अच्छा कहूँगी तो तारीफ़ में कुछ कमी सी लगेगी...
    अक्सर शब्दों की कमी से जूझती हूँ मैं..
    बस इतना कहूँगी कि.... दिल को छू गयी!
    :)

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