Saturday, February 4, 2012

होता है कब ऐसा
कि सबको हर जहां मिले
हर दीवानी सी ज़मीन को आसमां मिले...
है शौक चलने का तो तन्हा ही रहो चलते
जरुरी है क्या हर सफ़र में कारवां मिले....

ये ज़िन्दगी सीखे तुम्ही से , ज़िन्दगी क्या है ..??
हर जीत की गली ,तुम्हारे ही निशाँ मिले..

गर राह से भटको तो फिर भटको भी कुछ ऐसा
हर राह को तुममे ही उसका रहनुमा मिले...

परवाना शौक में जला है..कई बार खुद के ही...
नसीब में कहाँ उसे हर शब्(रात ) शम्मा मिले..

एक बार आँखों में ज़रा कुछ इश्क भर के देखो..
हर शक्ल हर शय(चीज़ ) में तुम्हे उसका मकां मिले...

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